Thursday, May 28, 2020

"कच्चा आम"

"कच्चा आम"

क्यूं ताजगी नहीं मिलती भोर से,
क्यूं नीरस लगती तुम्हें ये शाम,
जीवन को इतना भी न समझों,
के रह न पाओ फिर "कच्चा आम"

थोड़ा सीखोगे,थोड़ा पढ़ोगे,थोड़ा बढ़ोगे,
त्वरित का नहीं है ये काम,
गर जल्दी पका लोगे खुद को
तो समझ परे है ये "कच्चा आम"

कच्चा होना, पक्के से बेहतर है,
गांठ बांध लो बस ये ज्ञान,
गहरे हो गये गर जग के आगे,
पका न सकोगे फिर "कच्चा आम"

कच्चे-पक्के में बस ये अन्तर है,
कच्चा तत्पर, पक्के को है आराम,
गिर गये जो पक के डाली से,
जोड़ न सकोगे फिर "कच्चा आम"

अंकुर से बाहर, धूप की मार तक,
सब सहना सिखाता है वो राम,
स्वघोषित परिपक्व हो गये तो,
फिर अचार ही बनेगा "कच्चा आम"

ललक झुकने की तरु से सीखों,
तभी बन पायेगा कुछ नाम,
हवाओं की रवानगी को न समझे,
कुचला जायेगा फिर "कच्चा आम"

अपनी करनी में सोच को जगह दो,
मत करो बेमतलब स्व: गुणगान,
तारिफें सब तुम कर लोगे,
क्यूं चखेगा, फिर कोई "कच्चा आम"

पवार कहता, सतत् को स्वीकारो,
जिज्ञासा को न दो आराम,
परिपूर्णता जीवनभर न आती,
इसलिये बने रहो "कच्चा आम"

स्वरचित
किसी को कुछ समझ न आये तो "कच्चे आम" बन के कमेन्ट में पूछ लें।🙏
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०


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