Friday, May 22, 2020

"दो कप चाय"

"दो कप चाय"

हो मुनासिब तो साथ मेरे जी लेना,
होके तैयार फिर जख्मों को सीं लेना,
न नजर आये कोई जब अपना सा
आना बेझिझक मेरे पास,
और दो कप चाय पी लेना....

चाय नहीं ये वक्त गुजारने का तरीका है,
अपनों से अपनी कहने का मौका है,
मेरा नहीं, तेरा नहीं हक इस पर सबका है,
जायका चाहो जब इसका कभी लेना
आना बेझिझक मेरे पास,
और दो कप चाय पी लेना....

कलयुग का सोमरस समझो इसे,
भौतिकता में रसायन मानों इसे,
सर्वश्रेष्ट मसालों का मिश्रण जानों इसे,
चाहो लबों पर जब इसकी नमी लेना
आना बेझिझक मेरे पास,
और दो कप चाय पी लेना....

साथ इसके साथी बहुत हैं,
बिस्कुट,नमकीन,पापे सब इसमें घुलित हैं,
चीनी, पत्ती, दूध सब इसमें निहित हैं,
जगह न इसकी कोई ले सका,
चाहे कितना भी पी घी लेना
फिर आना बेझिझक मेरे पास,
और दो कप चाय पी लेना....

ताजगी की घोतक यही है,
सर्द रातों की सच्ची ज्योत यही है,
पवार के तो दिन का आधार स्त्रोत यही है,
तुम भी भटको मत, ज्ञान सही लेना
और
आना बेझिझक मेरे पास,
और दो कप चाय पी लेना....

स्वरचित
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०

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