Tuesday, May 26, 2020

"किस्सा किस्मत और कर्म का"

"किस्सा किस्मत का"

         बिना कर्म के कुछ भी सम्भव नहीं, किस्मत भी उन्हीं का साथ देती है जो कर्म करते हैं, और किस्मत के भरोसे नहीं बैठतें। मगर आप किस्मत की अनदेखी भी नहीं कर सकते क्योंकि पवार  ने बहुत से लोगों को सिर्फ किस्मत के सहारे चमकते देखा है, हां, लेकिन वो चन्द लोग ही होते हैं, देर से ही सही असली सफलता की गारन्टी तो आपकी मेहनत ही देती है।
         चमन और रेखा कालेज में मिले और दिल दे बैठे। चमन बड़ा सीधा-साधा लड़का था और रेखा भी लगभग उसी के जैसी थी, दोनों ने साथ स्नातक किया और फिर परा स्नातक भी। इन पांच सालों में वो एक-दूसरे को भली-भांति जान गये थे और साथ जीने-मरने के अनकहे वादे भी कर चुके थे। चमन ने एक स्कूल में पढ़ाना सुरू कर दिया था और थोड़ा बहुत कमा के सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। घर से इतना मजबूत नही था वो, ये बात रेखा भी जानती थी। फिर रेखा का फोन आया एक दिन और बताया कि घर पर शादी की बात चल रही है, तुम आ जाओ। चमन बोला, मैं क्या बात करूंगा…?  रेखा बोली, कुछ भी करना, कल आ जाना जरूर, मैं सबको बता दूंगी। चमन ने कोई विकल्प न देख हां कह दी।
       रेखा घर की इकलौती लड़की थी, घरवाले उसकी हर बात सुनते थे।‌ माहौल बन चुका था, जैसे ही चमन पहुंचा, सबसे नमस्कार हुई और जानकारी लेने का दौर सुरु हुआ। रेखा के पापा बोले, बेटा आपका कोई निश्चित काम नहीं है और न नौकरी, कैसे बात बनेगी, बताओ। चमन बोला, जी, तैयारी कर रहा हूं, जल्द कुछ कर लुंगा। पापा बोले, देखो, हम दबाब बनाने वाले अभिभावक नहीं है, बेटी जहां कहेगी, कर देंगें शादी मगर बेटा हम भी तो कुछ देखेंगें और ज्यादा समय तुम्हारा न लेते हुये, बस इतना कहूंगा कि समय बता दो मुझे, कब तक इन्तजार करूं, ताकि तुम कहीं पहुंच सको और मैं निश्चित हो शादी कर सकूं। चमन ऐसी स्तिथी में पहली बार था और बोला जी, छ: माह का वक्त दे दीजिये। पिताजी मुस्कुरा के बोले, एक साल का दिया। मिलते हैं फिर, और हां मुझे वास्तव में इन्तजार रहेगा, तुम्हारे सफल होने का, निराश मत करना। कह के पिताजी निकल गये, और जब चमन निकला तो रेखा गेट तक छोड़ने आयी और बोली, देखो, मेहनत तो करनी होगी, तुम भी करो और मैं भी। देखते हैं क्या होता है फिर।

           चमन घर आ गया, बहुत सोचा और लगा कि यहीं वक्त है कुछ करने का वरना जिन्दगीभर दर्द भरे गाने सुनता रह जाऊंगा और छोटी-मोटी नौकरी छोड़,कष्ट भुगतता हुआ वो लग गया तैयारी में और ऐसा लगा कि सबकुछ भूल गया। न खाने की सुध न किसी से मतलब,बस किताबें, किताबें और किताबें। उसने रेखा से बात करना भी लगभग बन्द कर दिया, रेखा भी ये समझती थी सुरक्षित भविष्य के लिये ये दूरी जरुरी है और वो भी कुछ न कुछ पढ़ती रहती। कभी-कभी जब दोनों की बात होती तो चमन बताता की क्या पढ़ रहा है या कितना पढ़ लिया और क्या समझ नहीं आ रहा उसे। रेखा तेज थी पढ़ने में कुछ समस्यायें फोन पर ही हल कर देती।
      ९ महिने की घनघोर तैयारी के बाद, परिक्षा की तिथी भी घोषित हुई और चमन परिक्षा भी देकर आया, मगर उम्मीद के मुताबिक नहीं कर पाया तो रेखा ने समझाया, अरे कोई नहीं, हो जायेगा तुम्हारा, तुमने पूरी मेहनत की है। चमन के लिये ये शब्द काफी नहीं थे वो अगली परीक्षा की तैयारी में लग गया, २ महिने बचे थे बस, रेखा के पापा को बताने को कुछ नहीं था, उसके पास और अगली परिक्षा भी अभी निश्चित नहीं थी। भविष्य और प्यार को अंधेरें में देख एक रात वो टूट गया, और रेखा से बात करते-करते रो पड़ा। बोले जा रहा था, मैंने पहले बहुत वक्त बर्बाद कर दिया यार, सही समय पर मेहनत कर लेता तो हमारा कुछ हो जाता मगर मैं अब क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा। रेखा ने खूब तसल्ली दी, मगर वो काफी नहीं थी।
        और २ महिने भी बीत गये, परिक्षा का परिणाम भी आया और चमन ३ नम्बर से चयन पाने से रह गया और पूरी तरह टूट गया। रेखा ने खूब फोन किये उसे मगर उसकी हिम्मत नहीं थी उठाने की। फिर नये नम्बर से फोन आया, चमन ने उठाया और उधर से भारी सी आवाज आयी, कैसे हो चमन बेटा, मैं रेखा का पिता बोल रहा हूं। निराश आवाज में चमन बोला, जी नमस्ते। क्या हुआ बेटे रिजल्ट का? जी, फेल हो गया मैं, और दबती सी आवाज में बोला चमन। तो अब क्या करना है बेटा जी। जी, जो आपको ठीक लगे, मैं तो फेल ही हूं, और चमन ने फोन काट दिया।
       और चमन ने सब कुछ किस्मत पर छोड़ एक बार फिर किताबें उठायी, लग गया फिर से। दो दिन बाद रेखा, अपने मां-बाप के साथ चमन के घर पर खड़ी थी और उन लोगों को अन्दर बैठाया गया, चाय नाश्ता लगाया गया। चमन और रेखा दोनों सर झुकाये बैठे थे, रेखा के पापा बात सुरू करते हुये चमन के पापा से बोले, कि देखिये हमारे और चमन के बीच एक डील हुई थी, और चमन उसमें फेल हो गया। हम लड़की वाले हैं, हमें तो आगे बढ़ना ही है, और हमने रेखा की शादी तय कर दी है,उसी की मिठाई देने परिवार सहित आया हूं, बेटे दिल छोटा मत करना, मगर एक बाप की नजर से देखोगे तो मैं गलत नहीं हूं। चमन की आंखों से दो आंसू टपक पड़े, बेइन्तेहा प्यार जो करता था रेखा से, और ये अंतिम मौका था रेखा को देखने का। वो खड़ा होकर रूआसीं सी आवाज में बोला, क्या मुझे एक मौका और मिल सकता है अंकल? रेखा के पापा सख्त होते हुये बोले, नहीं और उसकी तरफ मिठाई का डब्बा बढ़ाते हुये बोले, अब तुम देखो, जो करना है, जब भी करना हो, कर लेना। रेखा तो जा रही है।
       रेखा परिवार सहित जाने को खड़ी हो गयी, चमन बस खड़ा रह गया और रेखा बोली, रोकेगे नहीं मुझे, लाल आंखों से चमन ने उसकी तरफ देखा और लगभग फर्स पर बैठ सा गया, भर्रायी सी आवाज में बोला, कैसे रोकूं तुम्हें, तुम्हारे पिताजी की बात सही है बिल्कुल और मै कुछ भी कर नहीं पाया। रेखा की मां बोली, बहुत हुआ अब बन्द करो ये नाटक सारे लोग, बच्चे को बीमार करोगे क्या, कितने सख्त हो सारे लोग। बेटा परिक्षा में फेल हुये हो, जिन्दगी में नहीं और हां तुम्हारे वाले पेपर की तैयारी तुम्हें बिन बताये रेखा ने भी कि थी और ये सफल हो गयी है, हमें तो बेटा तुम दोनों की खुशी चाहिये बस, अब हम निश्चिंत हो तुम दोनों की शादी करा सकते हैं, क्योंकि तुम आत्मनिर्भर हो। बस यही देखना था तुम दोनों में कितना बालपन बाकी है अभी।
    चमन तो भौच्चक सा देखता रह गया। और हां, रेखा के पापा बोले, ये सब तुम्हारे मां-बाप को भी पता है, पिछले एक साल से हम सम्पर्क में हैं, मैं तुम्हारी तैयारी और त्याग के बारे में सब जानता हूं बेटा मगर रेखा ने चयन पाकर हम सबको वास्तव में चौंका दिया, क्योंकि खिलाड़ी के रूप में हम सब खेल तुम्हारा देख रहे थे और गोल रेखा कर गयी, मगर जीते तो दोनों ना, रेखा की मां बीच में टोकते हुये बोला और सब हस पड़े। शादी तो हो जायेगी बेटा, मगर तैयारी जारी रखो, रेखा के पापा ने आश्वासन दिया और वो मिठाई रेखा के चयन की है बेटा जी।
        चमन सबको दरवाजे तक छोड़ कर "सौदेबाज किस्मत" और "कर्म" में अन्तर कर रहा था, फिर किताब उठाई और लग गया तैयारी में।
स्वरचित
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०

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