"बस दो कदम"
रहो साथ मेरे बस तुम जन्मों-जन्म,
हाथों में हाथ हो, मौसम भी सर्द गरम,
बहुत भागा-दौड़ी है हमारी जिन्दगी में
बैठों कुछ पल, चलते हैं साथ दो कदम....
कभी तुम्हारी चाय को याद करता हूं,
फिर
तन्हाई में शायरी करता हूं,
बेफिक्र सा मैं, फिक्र भी करता हूं,
लगती हो सच कभी, और कभी भ्रम
बहुत भागा-दौड़ी है हमारी जिन्दगी में
बैठों कुछ पल, चलते हैं साथ दो कदम....
खिलखिलाना तुम्हारा गूंजता है,
शैतानियों में मन झूमता है,
अतीत सारा नजरों में घूमता है,
मैं तो हूं बस यहां, मन वही है सनम
बहुत भागा-दौड़ी है हमारी जिन्दगी में
बैठों कुछ पल, चलते हैं साथ दो कदम....
मेरी ख्वाहाशों को जो तुम तवज्जो देती हो,
मेरे हर दुख को जो अपना समझ लेती हो,
माथे की शिकन से ही सब पढ़ लेती हो,
तुम हो जो पास"पवार" के, ईश्वर का है ये करम
बहुत भागा-दौड़ी है हमारी जिन्दगी में
बैठों कुछ पल, चलते हैं साथ दो कदम....
मेरी शायरी,कविताओं का आधार तुम हो,
नीरस सी जिन्गी की झंकार तुम हो,
मेरी तो बस चाहत और प्यार तुम हो,
तुम ही लेख मेरे, तुम ही मेरी नज्म
बहुत भागा-दौड़ी है हमारी जिन्दगी में
बैठों कुछ पल, चलते हैं साथ दो कदम....
स्वरचित
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०
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