Friday, May 22, 2020

"जिज्ञासा और जीवन"

"जिज्ञासा और जीवन"
     जिज्ञासा ही जीवन के जुझारूपन की जड़ है, और अगर जिज्ञासा ही न रहे तो जीवन निरर्थक और बोझिल सा हो जाता है इसलिये हमेशा जिज्ञासु बने रहिये और जानते-सीखते रहिये आस-पास के माहौल और लोगों से। जीवन में मजा भी आयेगा और नवीनता भी बनी रहेगी।
      मधु पैंतीस वर्षीय एक कामकाजी महिला है और हमेशा से जिज्ञासु प्रवृत्ति की रही है तो आज एक निश्चित मुकाम पर भी है, वह एक बड़ी नामी कम्पनी में नौकरी करती है और अच्छा वेतन पाती है। मतलब सबकुत ठीक और लाजबाब चल रहा है। इस कम्पनी में उसे काम करते हुये ४ चार हो गये और कम्पनी को मधु ने काफी मेहनत से एक सफल कम्पनी में बदला है इसलिये उसके मालिक उसे सिर्फ कर्मचारी नहीं कम्पनी का मजबूत स्तम्भ मानते हैं।
     कम्पनी में विशाल नाम का एक युवक भी है, जो बहुत मेहनती और बढि़या दिखने वाला है। ये एम.बी.ए. पास युवा २ साल से कम्पनी में है और इसके उपाय और तरीके नायाब होते हैं, मधु कई बार विशाल के त्वरित निर्णय लेने की क्षमता से प्रभावित हुई है। कभी-कभी मधु को लगा है कि विशाल सिर्फ उसे बास की तरह ही नहीं देखता, उसकी आंखें और भी कुछ कहना चाहती हैं, मगर फिर वह अक्सर चुप रह जाता है।
       पवार की ये कहानी थोड़ी बड़ी हो सकती है, मगर धैर्य से पढ़ियेगा। एक दिन लंच में जब मधु आफिस की छत पर थी तो वही विशाल आयख और बोला देखो, मधु आप मुझसे उम्र और ओहदे दोनों में बड़ी हो, अनुभवी हो और एक सफल महिला हो, खैर इन सब बातों को अगर छोड़ भी दूं तो व्यक्तिगत रूप से आप मुझे बहुत पसन्द हो, मैं बस ये बताना चाहता हूं कि मैं आपसे लगाव रखता हू और काफी हिम्मत कर ये सब कह रहा हू, तो आपके दिल में अगर कुछ भावनायें हो मेरे लिये तो बता दीजियेगा और सोच समझ के जबाब दीजियेगा, मैं इन्तजार करूंगा। और हां, इससे हमारे काम पर कोई फर्क नहीं पढेगा।
   विशाल चला गया, और मधु अतीत में खो गयी। कैसे बचपन से उसने संघर्ष की है और किसी ने कभी उससे प्यार तो दूर सहानुभूति भी नहीं रखी। पिता का देहान्त जब वो ८ साल की थी तभी हो गया था,  उसका और उसके छोटे भाई का लालन-पालन मां ने बड़ी मस्सक्कत और मेहनत से किया था। जैसे-जैसे वो समझदार हुई, अपनी जिम्मेदारियां भी सम्हालती गयी, और टोकरें खाती हुई और समाज से तौर-तरिके सीखते हुये अपने छोटे भाई का भविष्य भी सम्हाला और अपना भी। बाद में छोटा भाई प्रेम-विवाह कर अलग हो गया। कभी-कभी फोन कर लेता है। अब घर में मां और मधु ही रहते हैं। मां अक्सर कहती है कि तू शादी कर ले, बहुत देर हो गयी है वैसे भी। मगर मधु को तो ये रिश्ते जैसे क्षणिक लगते है। एक लम्बा अर्शा जो उसने इस निर्मोही समाज से लड़कर जिया है, तो विश्वाव ज्यादा उसको किसी पर रहा ही नहीं है।
      मगर विशाल के बारे में उसे सोचना चाहिये, उसने अपने मन से कहा। मगर अन्दर से आवाज आयी वो तुझसे ०३ साल छोटा है, कम्पनी में भी कम ओहदे पर है और भी बहुत कुछ। समाज क्या कहेगा? फिर खुद बोली, समाज तो कुछ न कुछ कहता ही है हमेशा इसलिये कल जरूर विशाल से बात करेगी और मन की बात कह देगी। अगले दिन वो इन्तजार करती रही मगर विशाल आफिस नहीं आया और उसका नम्बर भी नहीं लगा। अगले २-३ दिन भी विशाल नहीं आया तो मधु ने उसके साथ के लोगों से पता करने को बोला।
      २ दिन बाद चेतन जो विशाल का दोस्त था, उसने मधु को बताया कि विशाल तो गांव में है और अब नहीं आ पायेगा। मधु चौंकते हुये बोली क्यूं क्या हुआ, चेतन बोला, अरे उसकी शादी हो गयी, गांव में एक लड़की से ये प्यार करता था और फिर शहर आ गया था, बीच-बीच में गांव जाता रहता था और अब उससे शादी की मना करता था, तो उस लड़की ने बात घर बता दी, पंचायत बैठी और फैसला हूआ, इसको शादी करनी होगी। बहाने से बुलाया गया और शादी कर दी गयी।
एक सांस में चेतन ये सब बोल गया।
      मधु फिर सोचने लगी, जिन्दगी जाने क्या चाहती है मुझसे। जब भी लगाव सा हुआ है, उस शक्स को अलग ही कर दिया है। तभी जीवन को सिर्फ अपने लिये और अपनी मां के लिये जीने का फैसला किया और बाल सम्हालते हुये काम में लग गयी, दिमाग में चल रहा था, पता नहीं ये सोच "अंत है या आरम्भ"
स्वरचित
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०

No comments:

Post a Comment