Thursday, June 11, 2020

"मौत पहचानती आंखें"

  "मौत पहचानती आंखें"     

                 युधिष्ठिर जब स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे तो उनके साथ, उनका कुत्ता भी था। जो साथ में स्वर्ग गया। सृष्टि के प्रारंम्भ से उन कुछ प्रमुख जानवरों में से कुत्ता भी है जो हमेशा से मानव के साथ रहता आ रहा है और अपनी वफादारी के सबूत देता रहा है। मैंनें विज्ञान में अक्सर पढ़ा है कि उन जानवरों में जिन्हें स्वप्न आते हैं, उनमें कुत्ता भी है और इनके पास "आंखें जो मौत देख सकती हैं", होती हैं। इन्हें किसी भी प्रकार की बड़ी घटना का पहले से अंदेशा हो जाता है और इनका व्यवहार बदल जाता है।
         टाबी एक एनीमल लवर है और खासकर कुत्ता प्रेमी। जादा उम्र नहीं है उसकी मगर प्यार जताने की उम्र भी कहां होती है। २४ साल की उम्र में उसने अपने मोहोल्ले के कुत्तों में काफी प्यार कमा लिया। रोज शाम को ३-४ बिस्किट के पैकेट ले जाकर बांटता वो और कुत्ते भी दुम हिला हिला के उसके चारों ओर घूमते, और उसकी छाती तक चढ़ जाते। उन सबमें स्वीटी बहुत प्यारी थी उसे। व़ो जब भी कुछ भी खाने का लेकर जाता स्वीटी भागकर उसके पास आ जाती, पूंछ हिलाती हुई, सर आगे पीछे करती हुई और अगले पैरों को मोड़कर पिछले पैंरों में घुसा लेती। कभी कभी तो लाड़ में लेट जाती और उल्टी हो जाती। टाबी का पीछा करते-करते कभी-कभी तो घर के गेट तक आ जाती मगर मां-बाबू जी को कुत्ते पसन्द नहीं थे तो टाबी गेट से ही विदा कर देता उसे।
          काम से जब कभी देर रात टाबी लौटता तो कितना भी अंधेरा हो और बाकी कुत्ते भले ही दूर से न पहचान पा रहे हो टाबी को और भौकं रहे हो, मगर स्वीटी दूर से ही पूंछ हिलाती हुई आती और लगभग उसके ऊपर चढ़ सी जाती। जो भी कुछ उसके पास खाने का होता, दे देता या न भी होता तो उसे कुछ वक्त जरूर देता। स्वीटी उसको मौहल्ले के गेट के आस पास ही मिलती थी अक्सर। ये जो मोहल्ले में कुत्ते बढ़े थे वो सब स्वीटी की पैदाईस थे और टाबी को जब भी पता चलता की स्वीटी गर्भवती है वो मां से कहकर कुछ न कुछ बनवाता उसके लिये, आते जाते ख्याल रखता उसका।
            अनेंकों बार स्वीटी के अजीब व्यवहार से बाहरी लोगों को मोहल्ले में घुसने से रोका गया। एक बार तो जब स्वीटी टाबी के घर के बाहर एक ही जगह को देखकर बार-बार भौंक रही थी, तो टाबी देखने गया कि माजरा क्या है तो पाया कि वहां एक बड़ा काला सर्प था, जिसे ये घेरे खड़ी थी और भौकं-भौक के उसे आगे न बढ़ने दे रही थी। खैर बाद में सर्प को पकड़कर स्वीटी को खूब शाबासी मिली। ऐसे अनगिनत किस्से थे जिसमें स्वीटी का भरपूर योगदान रहा। आप उसे रोटी दे, न दें मगर वो पूरे मोहल्ले की अघोषित और बिना वेतन की चौकीदार थी।
        बचपन कब बुढ़ापे मैं बदला पता न चला, और स्वीटी धीरे धीरे कमजोर होने लगी, उसकी खाल सी लटक गयी थी, और दांत भी ज्यादा नहीं बचे थे। वो फिर भी अपना कर्तव्य निभाने में अपने जवान बच्चों के साथ लगी रहती कि जैसे उन्हें सीखा रही हो स्वामी भक्त क्या होता है। एक दिन जब टाबी काम पर जा रहा था तो स्वीटी उस पर खूब भौंकी, टाबी ने प्यार से सर पर हाथ फिराया और वो शांत हो गयी। टाबी ने कुछ बिस्किट दिये और वो बस टाबी को देखती रही, टाबी ने उसकी आंखों में अजीब सी मायूसी देखी फिर बोला,"शाम को मिलतें हैं स्वीटी।" और चला गया।
          टाबी शाम क़ो लौटा तो हाथ पैर धोकर जल्दी बैग से बिस्किट निकालें और मम्मी से बची कुची रोटियां मांगी और निकल गया स्वीटी से मिलने, उसने खूब सीटी बजाई, आवाज लगाई, बाकी कुत्ते आ गये मगर स्वीटी कहीं नहीं दिखी। वो उनको खाना खिला के स्वीटी की तलाश में निकला तो थोड़ी बहुत मस्सक्कत के बाद ही स्वीटी को पार्क की उन झाड़ियों में पाया, जहां व़ो अक्सर अपने बच्चों को जन्म देती थी। आज निश्छल और भाव विहिन पड़ी थी, टाबी ने खूब सीटी बजाई मगर वो तो अपना कर्तव्य पूरा कर सेवानिवृत्त हो चुकी थी। टाबी दु:ख से वहीं बैठ गया और सुबह वाली स्वीटी की आंखें याद आने लगी, जब टाबी ने बोला था कि शाम को मिलतें हैं, और वो जैसे अपनी मौत देख चुकी हो, कह रही हो कि बाबू शाम तक का वक्त नहीं है हमपे। वो भौकं भी इसलिये रही थी क्योंकि वो शायद आज टाबी के साथ रहना चाहती थी। टाबी की आंखों में आंसू थे और हाथ में कुछ बिस्किट के पैकेट।
स्वरचित✍️
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०

No comments:

Post a Comment