"सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये"
कल की ही घटना है,
मगर लगता जैसे अर्सा हुआ प्रभात हुये,
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
तृष्णा से परिपक्वता तक,
जरूरत से आपूर्ति तक,
बिहार से बॉलीबुड तक,
तुम हर जगह माहिर साबित हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
कभी काई पो छे, कभी राब्ता,
कभी सोनचिड़िया, कभी दिल बेचारा,
कभी धोनी तो कभी छिंछोरा,
बन सबके दिल पर सवार हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
अदाकारी ऐसी की नजर न हटे,
किरदार की पकड़ से न कभी भटके,
हर पैमाने पर जो खरा उतर सके,
दूसरे नायक जाने कब मन से बाहर हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
आवाज में रौब, कपोल पर चमक,
लचीला बदन, सबकुछ सीखने की ललक,
हर जगह गूंजतीं व्यक्तित्व की खनक,
फिर बिन कुछ बोले क्यों चुप हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
खबर आयी तो यकीं न हुआ,
चक्षु चौंके, मन स्तब्ध हुआ,
मस्तिष्क स्थिल, दिल धक् हुआ,
न सूझा कुछ, विचार भी आहात हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
कितनों की आशा ज्योत थे तुम तो,
कितनों के प्रेरणास्त्रोत थे तुम तो,
सकारात्मकता से ओत-प्रोत थे तुम तो,
फिर क्यों हमारे नैंनों से ओझल हुये
ओ उन्मुक्त हंसी के मालिक
सुशांत.... तुम क्यों शान्त हुये.......
भावपूर्ण श्रद्धाजंलि🙏💐
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०
सिकन्दरा, आगरा
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