Thursday, June 11, 2020

चीटी

"चींटी"

पग पग धरती, आंगे बढ़ती,
कुछ सकुचाती, कुछ ठहरती,
ऊंचे-नीची हर जगह रेंगती,
रूकने का कभी नाम न लेती.....

तिनके सी है पर कौशल बड़ा है,
इनके आगे न कोई ठिका है,
मन इनका भी कभी अड़ा है, कभी लड़ा है,
मनके हिसाब से कब हैं चलती
पग पग धरती, आंगे बढ़ती,
कुछ सकुचाती, कुछ ठहरती....

हो झुंड में या अकेले,
हिम्मत नहीं, कोई पंगें लेले,
हर मौसम को ये सह लें,
गज से भी तनिक न डरती
पग पग धरती, आंगे बढ़ती,
कुछ सकुचाती, कुछ ठहरती....

चींटीं नहीं, अध्यापक है ये,
निरन्तरता की वाहक है ये,
सक्रियता सीखाने में सहायक है ये,
फिर भी कभी घमण्ड न करती
पग पग धरती, आंगे बढ़ती,
कुछ सकुचाती, कुछ ठहरती,

कई रंग और कई प्रजाति हैं इसकी,
सब सिखाती शिक्षा देखो एक सी,
चलते रहो बस दुनिया की ऐसी-तैसी,
ये दुनिया तो हमेशा ही है रोकती
पग पग धरती, आंगे बढ़ती,
कुछ सकुचाती, कुछ ठहरती....
स्वरचित✍️
सुमित सिंह पवार "पवार"
उ०प्र०पु०


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