Saturday, January 4, 2020

"इशारों की ठण्ड"

"इशारों की ठण्ड"
        अरे ये लड़की कभी मेरी सुनती ही नहीं.... कह कर रमा अपनी आठ साल की बेटी की ओर गुस्से से घूर रही थी और गुँजन(बेटी) दीवार से पीठ लगाये सहमी सी खडी़ थी। तभी अनिल बोला क्यूँ डाँट रही हो सुबह सुबह उसे, अब क्या कर दिया उसने?
करती ही तो नहीं है ये कुछ, रमा ने ताने रुपी बाण मारा। अनिल बोला, "तो 8 साल की बच्ची से क्या कराना है तुम्हें? रमा बोली," अरे कब से कह रही हूँ कि ये कूडादान बाहर खाली कर आ, मगर ये सुनती ही नहीं है। अनिल ने आँख से इशारा किया और गुँजन को गल्ती का एहसास हुआ तो वो कूडे़दान को लेकर बाहर दौड़ पडी़, मानो अब यही मम्मी के कहर से बचा सकता है। अनिल मुस्कुराते हुये बोला कि देखा, "कितनी, समझदार बिटिया है, सब इशारों में समझ जाती है। हाँ तुम्हारे ही तो इशारे समझती है ये, रमा कमर में साडी़ खोसते हुये रसोई की तरफ बढ़ गयी।
         गुँजन अब तक कूडा़ बाहर खाली कर के आ चुकी थी। अनिल बाथरूम में लगभग चीख पडा़,"यार रमा मरवाओगी क्या,"बोला था, गीजर आन कर देना, एक मग्गे ठण्डे पानी में साँस गले तक आ गयी है।" रमा ने एक नजर गुस्से की अनिल की ओर डाली। दिसम्बर के लास्ट में ये पानी तो जानलेवा हो जाता है, अनिल बड़बडा़ता रहा और नहाने लगा तभी बाहर से किसी के चिल्लाने की आवाज आयी,"अरे रमा,हमारे घर को क्या सरकारी कूडे़दान समझ रखा है,जो नजर बचते ही कूडा़ यहाँ फेंक देती हो। रमा घबरायी सी बाहर निकली तो बाहर का नजारा देखकर माथा पीठ लिया।
           गुँजन ने सारा कूडा़ सामने वाली निर्मला आँटी के दरवाजे पर डाल दिया था और निर्मला आँटी को आप मोहल्ले का लडा़कू विमान समझिये, उन्हें बस मौका चाहिये होता था। मगर गुँजन की भी क्या गल्ती, मम्मी ने बाहर कूडा डालने को बोला था, सो डाल दिया। अब तक निर्मला आँटी पूरा माहौल बना चुकी थी और रमा को देखते ही बात कूडे़ से सुरू होकर गडे़ मुर्दे उखाडने पर चलने लगी। रमा तो अपने घर में शहंशाह थी, बाहर तो शान्त महिला थी। वो बस आँटी-आँटी कह के लगी हुई थी और निर्मला आँटी पूरा मोहोल्ला इकट्ठा किये हुई थी, भई सबूत जो घर के सामने ही था।
        गुँजन बालकनी में खडी़ ये सब समझने की जद्दोजहद में थी। शोर-शराबा सुन अनिल भी जल्दी-जल्दी नहा के बाहर आया और मामले को समझा तो तुरन्त  बच्ची की गल्ती पर निर्मला आँटी से माफी माँगी और बोला रमा इसे साफ कर दो और गुँजन को तो आज मैं बताता हूँ फिर बालकनी में खडी़ गुँजन को आँख बडी़ कर के घूर के देखा। गुँजन अन्दर भाग गई। रमा भी झाडू लेकर सफाई में लग गयी और निर्मला आँटी को अपनी विजय का और मोहल्ले में धाक जमने का गुरुर हुआ और बोली,"चलो, कोई नहीं बच्चे तो गल्ती करते ही हैं। कूडा साफ हो चुका था और रमा भी अनिल की तरफ बढी शायद (इशारों में) सबकुछ सम्हालने के लिये धन्यबाद बोला। 
         दोनों अन्दर घुसे ही थे के बाहर से छपाक की आवाज आयी और दोनों ने बाहर देखा तो आँखें बाहर आ गयी। निर्मला आँटी भीगी हुई ठण्ड में खडी़ थी और ऊपर गुँजन एक मग्गा लिये। अनिल-रमा ने फटाक से गेट बन्द किया और अन्दर भागे। निर्मला आँटी अभी होश में नहीं है। रमा बोली,"आपकी बिटिया तो सारे इशारे समझती है ना? और अनिल सोच रहा था गुँजन ने किस इशारे का ये मतलब निकाला होगा।

भीषण ठण्ड त्रासदी को देखते हुये मेरी व्यग्यांत्मक स्वरचित रचना।
सुमित सिंह पवार
उ0प्र0पु0

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